नागपत्री एक रहस्य-6

कैसे हो इंद्रजीत????भला आज कैसे वक्त मिला तुम्हें???? इंद्रजीत स्वर को सुनकर दिनकर का ध्यान अचानक ही उस बुजुर्ग महिला पर गया, उसे देखकर दिनकर जी अचानक आश्चर्य और डर की मुद्रा में उनकी ओर देख,

जी प्रणाम मैंने आपको पहचाना नहीं???
और मेरा नाम दिनकर है, शायद कोई गलतफहमी हुई है आपको......
            दिनकर जी ने तो अभी-अभी चारों और देखा था, कोई नहीं था आसपास, फिर ये अचानक कहां से आ गई??और उन्हें इंद्रजीत कहकर क्यों पुकारा?????




लेकिन तभी वह बुढ़िया मुस्कुराई और कहने लगी, हां दिनकर तुम मास्टर जी के बड़े जवाई हो ना???? मैं तुम्हें जानती हूं अच्छे से, और इंद्रजीत का अभिवादन इसलिए किया, क्योंकि नाग कुल के जवाई जिन्होंने सबसे बड़ी ख्याति पाई, और जिसने अपने आप को इंद्रजीत के नाम से सुहाया ।
                        ठीक उसी प्रकार तुम सावित्री के बेटे दिनकर तुमने उतनी ही कठोर तपस्या के, बिना किसी छल कपट और किसी को आंतरिक दुख पहुंचाए, अपने पिता के व्यापार को बढ़ाकर ऐसा पंचम लहराया है, कि जिसे संपूर्ण गांव जानता है, तुम्हें तो पता भी नहीं होगा, कि इस गांव के आधे से ज्यादा युवा युवती तुम्हारे ही कंपनी के तकनीक शाला में काम करते हैं। 





तुम्हारे पिताजी का यहां आना जाना लगा रहता है, यहां सभी तुम्हें इस नाम से जानते हैं, और उन लोगों ने तुम्हें देखा है, जो किसी विवाह उत्सव या तुम्हारे विवाह में तुमसे मिले होंगे, ठीक इसीलिए मैंने तुम्हारी ख्याति को देखकर इंद्रजीत नाम से सुशोभित किया। 
                दिनकर खुश रहो और ऐसे ही हमारे कुल की बेटी चंदा को सुख पहुंचाते रहो, हमारा आशीष तुम पर बना रहेगा, अच्छा मैं चलती हूं, समय हो गया कहते हुए वह वहां से चल दिए। 



दिनकर जी को एक नया नाम और नई पहचान के रूप में अचानक बूढ़ी मां का आना और चले जाना अजीब सा लगा, वह खेतों में से टहलते हुए घर पहुंचे ,और सारी बात उन्होंने चंदा को सुनाई, उनकी बातें सुनकर वहां बैठी सासू मां मुस्कुराते हुए कहने लगी, लगता है आप खेत के उत्तरी सीमा तक घूम आए हैं।
है.. ना.. कहते हुए वे मुस्कुराने लगी, और यह सुनते ही चंदा अवाक सी दिनकर जी की और देखने लगी, और कहने लगी... क्या आप सच कह रहे हो?????यकीन नहीं होता???
यकीन????यकीन नहीं होता, मतलब क्या कहना चाहती हो??



           चंदा तुम स्पष्ट कहो, यह गांव तो बड़ा अजीब सा लगता है, मुझे हर बात पहेली में उलझी हुई लगती है, अब भला इसमें क्या अजीब था, कहते हुए वे चंदा की ओर देखने लगे,
                      इसके पहले कि वह और कुछ बोलते, दिनकर जी को उनकी सासू मां ने प्यार से समझाना शुरू किया, आप जिन बूढ़ी मां की बात कर रहे हैं, वह और कोई नहीं, वह हमारी कुलदेवी मां दोतलि थी ,और जिनके दर्शन विरले ही किसी को होते हैं,




लेकिन इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि जब भी कोई विचलित मन से वहां जाता है, वह स्वयं किसी न किसी रूप में उन्हें दर्शन देकर उनके प्रश्नों के उत्तर अवश्य देते हैं, शायद आपके मन में शंका थी, इसलिए उन्होंने स्वयं आकर आपकी शंका का समाधान किया।
             बेफिक्र रहिए..... आपका यहां आना व्यर्थ नहीं जाएगा, यह सौभाग्य है हमारा कि स्वयं मां दोतलि देवी ने आकर इस संबंध को स्वीकार किया, और आपकी शंका का समाधान किया, शीघ्र ही हम सभी मिलकर उनके मंदिर चलेंगे। 



कुछ रस्में आपकी अनुपस्थिति में शेष रह गई थी, वह भी पूरी हो जाएगी, कहते हुए वे पूजा और अन्य तैयारियों में जुट गई, लेकिन दिनकर जी के मन में तो जैसे सवाल ठहरने का नाम ही नहीं ले रहे थे, अंत में जब उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा, तो वे दोबारा टहलने का मन बना चंदा को साथ चलने का अनुग्रह करने लगे, क्योंकि यह गांव उनके लिए बिल्कुल नया सा प्रतीत होता था। 
            पास ही नैनिहाल होने के पश्चात भी इतनी व्यस्तता के कारण उनका गांव आना बहुत कम ही संभव हो पाता था, और जब आते भी थे तो किसी मेहमान की तरह, कभी शाम तक पहुंचते और कार्यक्रम में शामिल होते, और सुबह तक लौट जाते या सुबह आते और शाम तक लौट जाते। 




जो भी हो उन्होंने तो जैसे अपनी उच्च शिक्षा, और उसके बाद बिजनेस को आगे बढ़ाने की ललक ने तो उनके जीवन को वास्तविकता से बहुत परे कर दिया,
               आज उन्हें लगता है कि उन्होंने अपना कितना समय एक अधूरेपन में गुजारा, आते समय मस्ती में खेलते हुए बच्चों को दिनकर जी, जिस बच्चे की नजर से देख रहे थे, वह तो जैसे जीवन में बहुत पीछे छूट चुका था।



रही बात दोस्तों के प्यार और अपनों के व्यवहार की तो शिक्षण भी ऐसे महाविद्यालय में हुआ, जहां उच्च वर्ग के बच्चे जैसे सिर्फ विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए आए हो, हर कोई वहां जल्द से जल्द अपनी शिक्षा समाप्त कर, किसी ऊंचे पद को समाप्त करने के लिए समय मिलते ही अनेक विषयों की पढ़ाई में लग जाते। 
              हंसी ठिठोली यदा-कदा ही हुआ करती थी, यहां तक कि पति-पत्नी का यह अधूरा संबंध, और प्रेम रस और बहुत कम समय में भी मिलकर हंसना, मुस्कुराना और प्यार जताना, उन्होंने यहां आकर महज दो दिनों में ही अपने सास-ससुर को देखकर सीखा।



दिनकर जी को अपने आप और अपनी जीवन शैली पर बड़ा आश्चर्य होता है, और आत्म ग्लानि भी होती है, कि उन्होंने चंदा को सही प्यार और सत्कार नहीं दिया, वह हास्य अपनापन और वह मधुर संबंध का माहौल ना दे पाए, जिसकी कल्पना शायद हर लड़की अपने पति से व्यवहारिक जीवन के पश्चात चाहती है। 
                  बस इन्हीं जीवन उन्हें अब व्यर्थ सा जान पड़ता, उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन परिवर्तित करने का सोचा। 



आज पहली दफा चंदा को तैयार होने का कहकर घूमने चलने का निवेदन किया, चंदा अपने पति के मनोभाव में परिवर्तन को अनुभव कर रही थी, और मन ही मन खुशी के साथ मां दोतलि अपनी कुलदेवी को धन्यवाद भी दे रही थी, कि ऐसा परिवर्तन उन्हीं की कृपा से संभव हो पाया। 
                अब वे दोनों तैयार होकर खेत की ओर निकले, और अचानक भ्रमण करते हुए दिनकर जी की नजर खेत में आम के पेड़ पर पड़ी , जहां एक विशाल सर्प किसी झूले की तरह लटका हुआ था, इतना बड़ा और विशालकाय सर्प उन्होंने सिर्फ किताबों में पढ़ा था, और उससे भी ज्यादा खौफनाक दृश्य उनके दिमाग में किताबी ज्ञान ने भर रखा था।



           क्योंकि भारत की चमत्कारिक धरती और भारतीयों का व्यवहार उनकी सभ्यता, परंपराएं और सफलता जिसके महज कुछ पन्नों को ही विद्वान समझ पाया, इसलिए विद्यालय में ऐसी पुस्तके ना पढ़ाई गई और ना ही दिनकर जी के लिए पढ़ पाना संभव है, इसलिए उनके मन में उस डर से भी ज्यादा कुछ और देखने को मिलता है, और वह था चंदा के लिए उनके मन में प्यार। 
        उन्होंने झटके से चंदा को पकड़कर खींचा, और अपने पीठ के पीछे कर जकड़कर पकड़ लिया, और सीना तान ऐसे खड़े हो गए, जैसे वे कह रहे हो, चाहे जो हो जाए, मेरी चंदा को मैं कुछ नहीं होने दूंगा। 

चंदा ने पहली बार दिनकर जी का ऐसा प्यार, त्याग और ऐसा अनुभव जैसे पहली बार महसूस किया, और शांत होकर उनकी प्रति प्रतिक्रिया को देखने लगी।

क्रमशः.....

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1 Comments

Babita patel

15-Aug-2023 01:54 PM

Nice

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